♧वर्णमाला शिक्षण विधि♧
बच्चों को वर्णमाला कैसे सिखाएं?
इस तरह के सवाल से एक बात तो साफ-साफ समझ में आती है कि आप बच्चों को वर्णमाला रटाना नहीं चाहते हैं। आप चाहते हैं कि बच्चों को
वर्णमाला की समझ हो और वे उसका इस्तेमाल कर सकें।
इस सिलसिले में सबसे पहली गुजारिश यही होगी कि आप बच्चे को पूरी की पूरी वर्णमाला रटाने की कोशिश न करें। अगर आप ऐसा करते हैं तो आप पाएंगे कि बच्चा कुछ समय बाद पूरी वर्णमाला भूल जाएगा। हो सकता है कि उसे कुछ वर्ण याद रह जाएं। इसके बाद आपकी प्रतिक्रिया होगी, “मैंने बड़ी मेहनत से बच्चों को वर्णमाला सिखाई थी, देखो छुट्टियों के बाद वे सब भूल गये।
¤वर्णों की आवाज़ और बनावट¤
ऐसा करना बच्चे को कोरा कागज मानने की तरफ संकेत करता है। बच्चे खुद से भी सीखते हैं। अपनी अवधारणाएं बनाते हैं। वे जिन चीज़ों को खुद समझते हैं, उसे वे भूलते नहीं। इसलिए बेहतर होगी कि आप बच्चों को वर्णों के साथ एक सार्थक रिश्ता बनाने का मौका दें।
वर्णों की पहचान से बच्चे को पढ़ना-लिखना सिखाना चाहते हैं तो इसके लिए आप एक-एक वर्ण की आकृति, उसकी आवाज़, उससे बनने वाले शब्दों से शुरुआत कर सकते हैं। जैसे किसी शब्द की पहली आवाज़ क्या है? उस आवाज़ को आप वर्ण के रूप में बच्चों के सामने रख सकते हैं। किसी शब्द में आने वाला पहला वर्ण और पहली आवाज़ का रिश्ता जब बच्चे धीरे-धीरे समझने लगेंगे तो आपका काम आसान हो जाएगा। बच्चे वर्ण पहचानने लगेंगे।
☆शब्दों में इस्तेमाल का अवसर☆
मगर यह काम धीरे-धीरे होना चाहिए। हड़बड़ी में नहीं। शुरुआत ऐसे वर्णों से करें जो बार-बार इस्तेमाल होते हैं। ऐसे कई वर्ण सिखाने के बाद आप उनको आपस में जोड़कर शब्द बनाना और शब्दों को पढ़ना बच्चों को सिखा सकते हैं।
जैसे आ और म। के बाद आम पर आ सकते हैं। आ और ए सिखाने के बाद ‘आए’ की बात कर सकते हैं। ग, र और म सिखाने के बाद ‘गरम’ जैसे शब्द पर आ सकते हैं। चित्रों का इस्तेमाल जरूर करें।
इससे आप आम को देखकर जैसे बच्चे आम बोलते हैं, आम शब्द को भी उसी रूप में पढ़ने की दिशा में बच्चों को आगे ले जा सकते हैं। ध्यान रहे कि ‘आ’ को ‘आ’ ही पढ़ा जाये, वह आम न हो जाये। क्योंकि आम से बच्चों का पुराना परिचय है, वह पहले याद हो जायेगा और ‘आ’ का नंबर उसके बाद आयेगा।
इसके अलावा निरर्थक शब्दों से भी बच्चों को पढ़ने और वर्णों की पहचान हो रही है या नहीं इसकी जाँच कर सकते हैं। क्योंकि ऐसे शब्दों को रटना संभव नहीं होता है। इससे बच्चों ने जिन वर्णों को सीखा है, उनकी समझ और ज्यादा पुख्ता हो जाएगी।
मात्राओं की शुरुआत
शब्द पठन के साथ-साथ मात्राओं के साथ भी बच्चों को परिचित कराया जा सकता है। इसके लिए एक बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि बच्चा मात्राओं के प्रतीकों के साथ-साथ उसकी आवाज़ से परिचित हो और मात्राओं के लगने से किसी वर्ण की आवाज़ में क्या बदलाव होता है इस बात को समझ पाये।
इसके लिए मात्रा के प्रतीक और उसकी ध्वनि से परिचित कराना चाहिए। उसके बाद वर्णों में मात्रा लगाने से उसकी आवाज़ में क्या बदलाव होता है? किसी शब्दांश को पढ़कर यह बताया जा सकता है। जैसे ‘क’ में //ई// की मात्रा लगने के बाद ‘की’ पढ़ा जाता है। ‘र’ में //ई// की मात्रा लगने से ‘र’ को ‘री’ पढ़ा जाता है। यह बात बच्चे को समझने का मौका देना चाहिए।
इसके साथ ही वर्ण से मात्रा मिटाकर पढ़ने का मौका दिया जा सकता है। इससे बच्चे को मात्राओं का कांसेप्ट समझ में आता है और उसे बारहखड़ी रटने की जरूरत नहीं होती। उसके पढ़ने की रफ्तार भी उन बच्चों की तुलना में अच्छी होती है, जिन्होंने बारहखड़ी को पहाड़े की तरह याद कर लिया है।
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