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Nov 8, 2015

आखिर हम क्यूं दीपावली मनाते हैं? दीपावली, तो इसलिए करते हैं लक्ष्मी पूजन

Diwali Katha: तो इसलिए करते हैं लक्ष्मी पूजन

भारत के गौरवशाली इतिहास का एक अहम हिस्सा इसके त्यौहारों का रहा है. भारतीय त्यौहारों की शान दीपावली का भी कुछ ऐसा ही अलग इतिहास रहा है. यूं तो भारत में दीपावली के बारे में किसी को बताने की जरूरत नहीं लेकिन फिर भी आज की युवा पीढ़ी को इसके इतिहास के बारे में जानना अवश्य चाहिए कि आखिर हम क्यूं दीपावली मनाते हैं?
दीपावली (Deepawali) से जुड़ी छोटी-छोटी और महत्वपूर्ण कथाएं
भगवान राम (Lord Ram) का आगमन
अमावस्या को भगवान श्रीराम रावण का वध करके अयोध्या वापस आए थे. उनके आगमन की खुशियों से पूरी अयोध्या नगरी अमावस्या की काली रात में घी के दीयों के प्रकाश से जगमगा उठी थी.
वामन रूप
इसी दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu)  ने वामन रूप में महादानी राजा बलि के दान की परीक्षा ली थी. इस रोज भगवान गणेश (Lord Ganesh), माता लक्ष्मी व माता सरस्वती की पूजा करना, पूरे वर्ष के लिए मंगलकारी सिद्ध होता है.
कुबेर मंत्र का जाप करने से विशेष फल की प्राप्ति

Laxmi Pujan: लक्ष्मी पूजन

इस दिन लक्ष्मी जी (Lakshmi) को लाल रंग के कमल के फूल चढ़ाना विशेष रूप से शुभ फलदायी होता है. दीपावली (Deepawali) के दिन दक्षिणावर्ती शंख का पूजन अत्यंत शुभ माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई है. शंख पूजन से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं. इस दिन शंख पर अनामिका अंगुली से पीला चंदन लगाकर पीले पुष्प अर्पित करके और पीले रंग के नैवेद्य का ही भोग लगाना चाहिए. इससे परिवार में स्वास्थ्य और समृद्धि बनी रहती है.
Deepawali 2013 Story: दीपावली कथा
प्राचीन दंतकथाओं के अनुसान बहुत पहले एक साहुकार था. उसकी बेटी प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाने जाती थी. पीपल पर लक्ष्मीजी (Lakshmi) का वास था. एक दिन लक्ष्मीजी (Lakshmi) ने साहुकार की बेटी से कहा तुम मेरी सहेली बन जाओ. उसने लक्ष्मीजी से कहा मैं कल अपने पिता से पूछकर उत्तर दूंगी. पिता को जब बेटी ने बताया कि पीपल पर एक स्त्री मुझे अपनी सहेली बनाना चाहती हैं. पिताश्री ने हां कर दी. दूसरे दिन साहूकार की बेटी ने सहेली बनाना स्वीकार कर लिया.
एक दिन लक्ष्मीजी (Lakshmi) साहुकार की बेटी को अपने घर ले गई. लक्ष्मीजी दे उसे ओढ़ने के लिए शाल-दुशाला दिया तथा सोने की बनी चौकी पर बैठाया. सोने की थाली में उसे अनेक प्रकार के व्यंजन खाने को दिए. जब साहुकार की बेटी खा-पीकर अपने घर को लौटने लगी तो लक्ष्मीजी बोली “तुम मुझे अपने घर कब बुला रही हो”.
पहले सेठ की पुत्री ने आनाकानी की परन्तु फिर तैयार हो गई . घर जाकर वह रूठकर बैठ गई. सेठ बोला तुम लक्ष्मीजी (Lakshmi)  को घर आने का निमंत्रण दे आयी हो और स्वयं उदास बैठी हो. तब उसकी बेटी बोली-“लक्ष्मीजी ने तो मुझे इतना दिया और बहुत सुन्दर भोजन कराया. मैं उन्हें किस प्रकार खिलाऊंगी, हमारे घर में तो उसकी अपेक्षा कुछ भी नहीं हैं.” तब सेठ ने कहा जो अपने से बनेगा वही खातिर कर देंगे.
तू फौरन गोबर मिट्टी से चौका लगाकर सफाई कर दे. चौमुखा दीपक बनाकर लक्ष्मीजी का नाम लेकर बैठ जा. उसी समय एक चील किसी रानी का नौलखा हार उसके पास डाल गई. साहूकार की बेटी ने उस हार को बेचकर सोने की चौकी, सोने का थाल, शाल-दुशाला और अनेक प्रकार के भोजन की तैयारी कर ली.
थोड़ी देर बाद गणेशजी और लक्ष्मीजी (Lakshmi) उसके घर पर आ गये. साहूकार की बेटी ने बैठने के लिए सोने की चौकी दी.
लक्ष्मी ने बैठने को बहुत मना किया और कहा कि इस पर तो राजा रानी बैठते हैं. तब सेठ की बेटी ने लक्ष्मीजी (Lakshmi) को जबरदस्ती चौकी पर बैठा दिया. लक्ष्मीजी की उसने बहुत खातिर की इससे लक्ष्मीजी (Lakshmi) बहुत प्रसन्न हुई और साहूकार बहुत अमीर बन गया. हे लक्ष्मी देवी! (Devi Lakshmi) जैसे तुमने साहूकार की बेटी की चौकी स्वीकार की और बहुत सा धन दिया वैसे ही सबको देना.

दीपावली और पटाखे (Deepawali Crackers)

सतयुग में जब चौदह साल के वनवास के बाद राम घर लौटे तो दीपों की लड़ियों से अयोध्या जगमगा उठी. तब न तन प्रदूषित थे, न मन. हवा-पानी स्वच्छ था. उल्लास और उमंग से सराबोर दीपावली पर्व (Deepawali Festival) मनाने की यह परंपरा ढाई से तीन दशक पहले प्रदूषित होनी शुरू हुई, जो आज चरम पर है. हर साल दीपावली पर पटाखों (Deepawali Crackers) की वजह से कई घटनाएं होती हैं. कई लोग आग का शिकार होते हैं. दीपावली दीपों का त्यौहार है ना कि पटाखों का. आज के पटाखों की आवाज से तो शायद भगवान के कान भी कांपते होंगे.
तो चलिए इस दीपावली खुद भी पटाखों से (Deepawali Crackers) दूर रहें और अपने आसपास के लोगों को भी पटाखों से होनी वाली हानियों के बारे में बताएं. इस दीपावली उजाला फैलाएं ना कि प्रदूषण.

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